Sunday 2 October 2022

गांधी जयन्ती

गांधी जी आज भी हैं !
हत्यारों के अनुयायी भी चश्मे के बदौलत देश साफ कर गये।
नफरत फैला कर भी नाम ले-ले तेरा लोगों के दिलों में जगह पा गये।
जिन्हें सत्ता में नहीं आना चाहिए,
कुर्सी पाकर हिटलर बन गये।
तेरा ही कमाल,
तुझे ही ठेंगा दिखा गये ॥
#सबकीबात
#विनोदकीलात

जय भारत !
जय जय जय !
©विनोदसचान
#बीतीबातें

Wednesday 29 June 2011

क्या है जनहित याचिका


ब्लॉग से जन - जन को अवगत करने को.

क्या है जनहित याचिका

जनहित याचिका (जहिया), भारतीय कानून में, सार्वजनिक हित की रक्षा के लिए मुकदमे का प्रावधान है। अन्य सामान्य अदालती याचिकाओं से अलग, इसमे यह आवश्यक नहीं की पीड़ित पक्ष स्वयं अदालत में जाए, यह किसी भी नागरिक या स्वयं न्यायालय द्वारा पीडितों के पक्ष में दायर किया जा सकता है। जहिया के अबतक के मामलों ने बहुत व्यापक क्षेत्रों, कारागार और बन्दी, सशस्त्र सेना, बालश्रम, बंधुआ मजदूरी, शहरी विकास, पर्यावरण और संसाधन, ग्राहक मामले, शिक्षा, राजनीति और चुनाव, लोकनीति और जवाबदेही, मानवाधिकार और स्वयं न्यायपालिका को प्रभावित किया है। न्यायिक सक्रियता और जहिया का विस्तार बहुत हद तक समांतर रूप से हुआ है और जनहित याचिका का मध्यम-वर्ग ने सामान्यत: स्वागत और समर्थन किया है। यहां यह ध्यातव्य है कि जनहित याचिका भारतीय संविधान या किसी कानून में परिभाषित नहीं है, यह उच्चतम न्यायालय के संवैधानिक व्याख्या से व्युत्पन्न है।

जनहित याचिका का पहला मुकदमा
जनहित याचिका का पहला प्रमुख मुकदमा 1979 में हुसैनआरा खातून और बिहार राय केस में कारागार और विचाराधीन कैदियों की अमानवीय परिस्थितियों से संबध्द था। यह एक अधिवक्ता द्वारा एक राष्ट्रीय दैनिक में छपे एक खबर, जिसमें बिहार के जेलों में बन्द हजारों विचाराधीन कैदियों का हाल वर्णित था, के आधार पर दायर किया गया था। मुकदमे के नतीजतन 40000 से भी यादा कैदियों को रिहा किया गया था। त्वरित न्याय को एक मौलिक अधिकार माना गया, जो उन कैदियों को नहीं दिया जा रहा था। इस सिध्दांत को बाद के केसों में भी स्वीकार किया गया।

जनहित के कुछ प्रमुख मुकदमे
2001 में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल), राजस्थान ने भोजन के अधिकार को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित चायिका दायर की। यह याचिका उस समय दायर की गई, जब एक ओर देश के सरकारी गोदामों में अनाज का भरपूर भंडार था, वहीं दूसरी ओर देश के विभिन्न हिस्सों में सूखे की स्थिति एवं भूख से मौत के मामले सामने आ रहे थे। इस केस को भोजन के अधिकार केस के नाम से जाना जाता है। भोजन के अधिकार को न्यायिक अधिकार बनाने के लिए देश की विभिन्न संस्थाएं, संगठन और ट्रेड यूनियन ने संघर्ष किया है।
पी.यू.सी.एल. द्वारा दायर की गयी इस याचिका का आधार संविधान का अनुच्छेद 21 है जो व्यक्ति को जीने का अधिकार देता है। सर्वोच्च न्यायालय ने कई बार जीने के अधिकार को परिभाषित किया है, इसमें इजत से जीवन जीने का अधिकार और रोटी के अधिकार आदि शामिल हैं।
एम सी मेहता और भारतीय संघ और अन्य (1985-2001) - इस लंबे चले केस में अदालत ने आदेश दिया कि दिल्ली मास्टर प्लान के तहत और दिल्ली में प्रदूषण कम करने के लिए रिहायशी इलाकों से करीब एक लाख औद्योगिक इकाईयों को बाहर स्थानांतरित किया जाए। इस फैसले ने वर्ष 1999 के अंत में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में औद्योगिक अशांति और सामाजिक अस्थिरता को जन्म दिया था, और इसकी आलोचना भी हुई थी कि न्यायालय द्वारा आम मजदूरों के हितों की अनदेखी पर्यावरण के लिए की जा रही है। इस जहिया ने करीब 20 लाख लोगों को प्रभावित किया था जो उन इकाईयों में सेवारत थे। एक और संबध्द फैसले में उच्चतम न्यायालय ने अक्टूबर 2001 में आदेश दिया कि दिल्ली की सभी सार्वजनिक बसों को चरणबध्द तरीके से सिर्फ सी एन जी ईंधन से चलाया जाए। यह माना गया कि सी एन जी डीजल की अपेक्षा कम प्रदूषणकारी है। अभी हाल में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल हुई है, जिसमें राजनीतिक दलों पर वोट की राजनीति के लिए चुनाव चिन्हों का दुरुपयोग करने और फोटो तथा चित्रों के द्वारा नेताओं का महिमामंडन करने पर रोक लगाने की मांग की गई है। रुचिका गिरहोत्रा मामले में वकील रंजन लखनपाल ने मामले की नए सिरे से जांच के लिए एक जनहित याचिका दायर की थी।

खारिज की गई याचिकाएं
पिछले कुछ वर्षों में उच्चतम न्यायालय में भारत का नाम बदलकर हिंदुस्तान करने, अरब सागर का नाम परिवर्तित कर सिंधु सागर रखने और यहां तक कि राष्ट्रगान को बदलने तक के लिए जनहित याचिकाएं दाखिल की जा चुकी हैं। अदालत इन्हें 'हस्तक्षेप करने वालों' की संज्ञा दे चुकी है और कई बार इन याचिकाओं को खारिज करने का डर भी दिखाया जा चुका है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सोमवार को उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें यूपी की सीएम मायावती को नोटों की माला पहनाए जाने के मामले की सीबीआई से जांच कराए जाने की मांग की गई थी। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने राय के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और उनकी पत्नी के खिलाफ दायर की गई उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसके तहत लोकायुक्त को इनके खिलाफ कथित डंपर (ट्रक) घोटाले की जांच में तेजी लाने का निर्देश देने की मांग की गई थी। मप्र हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ में पूर्व चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन, जस्टिस दीपक वर्मा और जस्टिस बीएस चौहान के खिलाफ जनहित याचिका दाखिल की गई। याचिका में सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी पर आपत्ति जताई गई है जिसमें लिव इन रिलेशन के मामले में राधा-कृष्ण का जिक्र किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाल में कहा कि निर्वासित जीवन बिता रहे मशहूर पेंटर एम. एफ. हुसैन को अदालत या देश का प्रधानमंत्री भी भारत लौटने पर मजबूर नहीं कर सकता। यह कहते हुए अदालत ने हुसैन के खिलाफ देश में चल रहे आपराधिक मामलों को रद्द करने संबंधी जनहित याचिका भी खारिज कर दी। इंदौर की एमजी रोड स्थित एक लाख वर्गफुट की आवासीय जमीन को मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह व अन्य उच्च अधिकारियों द्वारा कामर्शियल उपयोग के लिए करोड़ों में बेचे जाने का आरोप लगाने वाली लांजी के पूर्व विधायक किशोर समरीते की जनहित याचिका हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया।

26 जनहित याचिकाओं को हाईकोर्ट ने एक साथ खारिज किया
शिक्षा, स्वास्थ्य, डॉक्टरों की हड़ताल, किसानों को गेहूं का उचित दाम, ट्रैफिक कुप्रबंधन, पानी कुप्रबंधन जैसे जनहित के मुद्दों से जुड़ी 26 जनहित याचिकाओं को हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने एक साथ खारिज कर दिया। कोर्ट ने 72 पेज का फैसला सुनाया है, जिसमें सुप्रीम और मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के कई फैसलों का उल्लेख भी है। सभी याचिकाएं आनंद ट्रस्ट के ट्रस्टी सत्यपाल आनंद ने लगाई थीं।

Tuesday 10 May 2011

आरटीआइ दायरे में सहकारी बैंक खेल संघ और निजी स्कूल

दैनिक जागरण (Rashtriya)
चंडीगढ़ से दयानंद शर्मा जी ने बताया है---
आरटीआइ दायरे में सहकारी बैंक खेल संघ और निजी स्कूल

 केंद्र और राज्य सरकार के अधीन आने वाले विभाग ही नहीं खेल संघ, सहकारी बैंक, चीनी मिलें तथा निजी स्कूल भी आरटीआइ के दायरे में आते हैं। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने सोमवार को दर्जन भर मामलों को एक साथ निपटाते हुए यह बात कही। अदालत ने अपने आदेश में कहा, संघ और संस्थाएं सरकार से वित्तीय सहायता लेती हैं। अत: यह जन अथॉरिटी हैं, और उन्हें जनता द्वारा मांगी जाने वाली सूचना मुहैया करानी होगी। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के न्यायाधीश एमएस सूलर ने अनिल कश्यप की याचिका समेत दर्जन भर मामलों का एक साथ निपटारा करते हुए कहा, सभी निजी स्कूल, पंजाब क्रिकेट एसोसिएशन मोहाली, लॉन टेनिस एसोसिएशन जालंधर, सतलुज क्लब लुधियाना पर पब्लिक अथॉरिटी के नाते यह निर्णय लागू होगा। हरियाणा-पंजाब की सभी कोऑपरेटिव शुगर मिल, हाउसिंग सोसाइटी व बैंक प्रबंधन सोसाइटी रजिस्ट्रार के यहां पंजीकृत हैं। ऐसे में इन पर सरकार का नियंत्रण बनता है। ऐसी स्थिति में उन्हें भी जनता द्वारा मांगी जाने वाली सूचना मुहैया करानी होगी। न्यायाधीश ने कहा, सूचना अधिकार कानून संस्थाओं में पारदíशता बढ़ाने के लिए बनाया गया था लेकिन संगठन इसे नाकाम करने में लगे हैं। उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ता अनिल कश्यप ने पीसीए से संघ के सदस्यों, मोहाली क्रिकेट स्टेडियम व कुछ अन्य विषयों के बारे में कुछ सूचनाएं मांगी थी। पीसीए द्वारा सूचना देने से इनकार करने पर कश्यप ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। गत वर्ष सिंतबर में हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश मुकुल और न्यायाधीश अजय तिवारी की खंडपीठ ने करनाल सहकारी चीनी मिल की याचिका को खारिज करते हुए आदेश दिया था कि सार्वजनिक क्षेत्र से जुडी होती हैं और इस कारण वह सूचना के अधिकार के तहत सूचना देने के लिए बाध्य हैं।

Friday 6 May 2011

सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिकाओं के लिए नियम बनाने का आदेश दिया

 अदालत ब्लोग्पोस्त के लोकेश के अनुसार---
सुप्रीम कोर्ट ने अनुचित जनहित याचिकाओं (पीआईएल) के मद्देनजर एक उचित जनहित याचिका की पहचान करने के लिए उच्च न्यायालयों को आठ सूत्री व्यापक दिशानिर्देश जारी किए हैं। इसके साथ ही अदालत ने उत्तराखण्ड हाई कोर्ट में एक अनुचित जनहित याचिका दायर करने के लिए वहां के एक वकील पर एक लाख रूपए का जुर्माना कर दिया है। न्यायाधीश दलवीर भंडारी और न्यायाधीश मुकुंदकम शर्मा की पीठ ने सभी उच्च न्यायालयों को कहा है कि उचित और अनुचित पीआईएल में अंतर स्पष्ट करने के लिए उन्हें तीन महीनों के भीतर अपने नियम बना लेने चाहिए तथा अदालतों को उचित और प्रामाणिक पीआईएल को हर हाल में प्रोत्साहित करना चाहिए और उन पीआईएल को दरकिनार कर देना चाहिए जिन्हें अनुचित परिणामों के लिए दायर किया गया हो।

इसके साथ ही अदालत ने नैनीताल के वकील बलवंत सिंह चौफाल पर एक लाख रूपए का जुर्माना ठोक दिया। सिंह ने राज्य के महाधिवक्ता एल.पी.नैथानी की 2001 में की गई नियुक्ति पर सवाल खड़े करने की गुस्ताखी की थी। पीठ ने कहा कि जनहित याचिकाओं पर विचार करने के लिए हर न्यायाधीश अपनी व्यक्तिगत प्रक्रिया अपनाएं, इसके बदले उचित यह होगा कि हर हाई कोर्ट उचित पीआईएल को प्रोत्साहित करने तथा गलत इरादों से दायर की गई पीआईएल को दरकिनार करने के लिए ठीक से नियम बनाए।

Saturday 30 April 2011

जनहित याचिकाओं की राह में यूपी हाईकोर्ट का रोड़ा!

प्रवक्ता.कम के अनुसार ---

भारत के न्यायिक इतिहास में उत्तरप्रदेश हाईकोर्ट ऐसा पहला हाई कोर्ट हो गया है, जिसमें अब किसी गरीब और आम व्यक्ति या किसी भी संस्था की ओर से आसानी से जनहित याचिका दायर नहीं की जा सकेगी। हाई कोर्ट की प्रशासनिक कार्यवाही के तहत जारी किये गये उक्त आदेश को देखने से लगता है, मानो यह आदेश कार्यपालिका के किसी अधिकारी द्वारा आम लोगों की आवाज़ को दबाने के लिए जारी किया गया हो। जबकि न्यायिक अधिकारियों से ऐसे कठोर प्रशासकीय आदेशों की अपेक्षा नहीं की जाती है।
उ. प्र. हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाईन के नाम पर यह कदम उठाया है। जिनमें सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखण्ड से सम्बन्धित एक मामले में कहा था कि जनहित याचिकाओं का दुरुपयोग रोकने के लिये सभी हाई कोर्ट्‌स को अपने-अपने स्तर पर कदम उठाने चाहिये। उत्तर प्रदेश हाई कोर्ट ने हाई कोर्ट रूल्स 1952 के अध्याय 22 में संशोधन करके नियम एक में उपनियम 3-ए जोडा है। ऐसा बताया जा रहा है कि उ. प्र. हाई कोर्ट ने यह कहकर के उपरोक्त संशोधन किया है कि इससे हाई कोर्ट में दायर हो रही जनहित याचिकाओं के दुरुपयोग पर अंकुश लगाना आसान हो सकेगा।
अब इस नये नियम के मुताबिक जब कोई व्यक्ति उ. प्र. हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर करेगा तो सबसे पहले उसे एक शपथ-पत्र पेश करके अपना संक्षिप्त परिचय प्रमाणित करना होगा। इसके अलावा शपथ-पत्र में उसे यह भी स्पष्ट करना होगा कि उसका याचिका को दायर करने में कोई व्यक्तिगत हित या लाभ तो निहित नहीं है। उसे यह भी घोषणा करनी होगी कि जनहित याचिका मंजूर होने पर न तो उसे स्वयं को और न ही उसके किसी सम्बन्धी को किसी प्रकार का लाभ होगा। हाई कोर्ट के नये रूल में आगे यह भी कहा गया है कि शपथ-पत्र में स्पष्ट रूप से घोषणा करनी होगी कि याचिका में पारित आदेश से किसी व्यक्ति विशेष, समुदाय अथवा राज्य का नुकसान नहीं होगा।
यदि कोई सामाजिक संस्था याचिका दायर करती है तो उसे भी याचिका दायर करने के लिए अपनी विश्वसनीयता और जनहित से जुडे उसके कार्यों, उपलब्धियों आदि का विस्तृत विवरण दर्शाते हुए शपथ-पत्र पेश करना होगा। हाई कोर्ट के नये संशोधित नियम में यह और कहा गया है कि यदि उपरोक्त शर्तें या इनमें से एक भी शर्त याचिकाकर्ता द्वारा शपथ-पत्र के जरिये पेश की जाने वाली याचिका में स्पष्ट रूप से शामिल तोनहीं की जाती हैं तो याचिका पर हाई कोर्ट विचार ही नहीं करेगा।
हाई कोर्ट के उपरोक्त संशोधन संविधान की मूल भावना को ही समाप्त कर देने वाला है। इस प्रकार के कानून के बाद किसी असक्षम व्यक्ति द्वारा याचिका दायर करना तो हमेशा के लिये समाप्त हो जाने वाला है और पत्र-याचिका जैसी शब्दावली की भी समाप्ति ही समझी जावे। यह न मात्र अनुचित ही, बल्कि असंवैधानिक भी है। यदि गहराई में जाकर देखें तो हम पाते हैं कि जनहित याचिकाओं के जरिये आम लोगों के हितों और मानव अधिकारों का संरक्षण होता रहा है। ऐसे में हाई कोर्ट का यह नया कानून मानव अधिकारों का हनने करने वाला कदम सिद्ध हो सकता है।
इस बात में भी कोई दो राय नहीं है कि जनहित याचिका के माध्यम से कुछ लोग कानून के इस प्रावधान का दुरुपयोग और स्वयं के हित में उपयोग कर रहे हैं। लेकिन ऐसे कुछ लोगों के कारण सभी लोगों के न्याय प्राप्ति के मार्ग में बाधाएँ खडी कर दी जावें और नागरिकों के संवैधानिक संरक्षण प्राप्त करने के मौलिक अधिकारों पर परोक्ष रूप से पाबन्दी लगादी जावे, यह तो कोई न्याय नहीं हुआ।
यदि कोर्ट के समक्ष यह प्रमाणित हो जाता है कि कोई व्यक्ति जनहित याचिका के प्रावधान का दुरुपयोग कर रहा है, तो कोर्ट को ऐसे लोगों को दण्डित करने के लिये कडे कानून बनाने जाने चाहिये, न कि ऐसे चालाक किस्म के लोगों के कारण अन्य निर्दोष लोगों के न्याय प्राप्ति के मार्ग में व्यवधान पैदा किये जावें। मैं समझता हूँ कि न मात्र यह न्याय की माँग है, बल्कि मेरा साफ तौर पर यह भी मानना है कि इस संशोधन की संवैधानिकता को चुनौती दी जानी चाहिये और यदि चुनौती दी गयी तो संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 32 एवं 226 की अभी तक सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गयी विवेचना एवं यह न्याय के पवित्र सिद्धान्तों के सामने यह टिकने वाला नहीं है।

क्या है जनहित याचिका

 देश बंधू के अनुसार जनहित याचिका 
 
(08:50:13 PM) 31, May, 2010, Monday
जनहित याचिका (जहिया), भारतीय कानून में, सार्वजनिक हित की रक्षा के लिए मुकदमे का प्रावधान है। अन्य सामान्य अदालती याचिकाओं से अलग, इसमे यह आवश्यक नहीं की पीड़ित पक्ष स्वयं अदालत में जाए, यह किसी भी नागरिक या स्वयं न्यायालय द्वारा पीडितों के पक्ष में दायर किया जा सकता है। जहिया के अबतक के मामलों ने बहुत व्यापक क्षेत्रों, कारागार और बन्दी, सशस्त्र सेना, बालश्रम, बंधुआ मजदूरी, शहरी विकास, पर्यावरण और संसाधन, ग्राहक मामले, शिक्षा, राजनीति और चुनाव, लोकनीति और जवाबदेही, मानवाधिकार और स्वयं न्यायपालिका को प्रभावित किया है। न्यायिक सक्रियता और जहिया का विस्तार बहुत हद तक समांतर रूप से हुआ है और जनहित याचिका का मध्यम-वर्ग ने सामान्यत: स्वागत और समर्थन किया है। यहां यह ध्यातव्य है कि जनहित याचिका भारतीय संविधान या किसी कानून में परिभाषित नहीं है, यह उच्चतम न्यायालय के संवैधानिक व्याख्या से व्युत्पन्न है। 
जनहित याचिका का पहला मुकदमा
जनहित याचिका का पहला प्रमुख मुकदमा 1979 में हुसैनआरा खातून और बिहार राय केस में कारागार और विचाराधीन कैदियों की अमानवीय परिस्थितियों से संबध्द था। यह एक अधिवक्ता द्वारा एक राष्ट्रीय दैनिक में छपे एक खबर, जिसमें बिहार के जेलों में बन्द हजारों विचाराधीन कैदियों का हाल वर्णित था, के आधार पर दायर किया गया था। मुकदमे के नतीजतन 40000 से भी यादा कैदियों को रिहा किया गया था। त्वरित न्याय को एक मौलिक अधिकार माना गया, जो उन कैदियों को नहीं दिया जा रहा था। इस सिध्दांत को बाद के केसों में भी स्वीकार किया गया। 
जनहित के  कुछ प्रमुख मुकदमे
2001 में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल), राजस्थान ने भोजन के अधिकार को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित चायिका दायर की। यह याचिका उस समय दायर की गई, जब एक ओर देश के सरकारी गोदामों में अनाज का भरपूर भंडार था, वहीं दूसरी ओर देश के विभिन्न हिस्सों में सूखे की स्थिति एवं भूख से मौत के मामले सामने आ रहे थे। इस केस को भोजन के अधिकार केस के नाम से जाना जाता है। भोजन के अधिकार को न्यायिक अधिकार बनाने के लिए देश की विभिन्न संस्थाएं, संगठन और ट्रेड यूनियन ने संघर्ष किया है।
पी.यू.सी.एल. द्वारा दायर की गयी इस याचिका का आधार संविधान का अनुच्छेद 21 है जो व्यक्ति को जीने का अधिकार देता है। सर्वोच्च न्यायालय ने कई बार जीने के अधिकार को परिभाषित किया है, इसमें इजत से जीवन जीने का अधिकार और रोटी के अधिकार आदि शामिल हैं। 
एम सी मेहता और भारतीय संघ और अन्य (1985-2001) - इस लंबे चले केस में अदालत ने आदेश दिया कि दिल्ली मास्टर प्लान के तहत और दिल्ली में प्रदूषण कम करने के लिए  रिहायशी इलाकों से करीब एक लाख औद्योगिक इकाईयों को बाहर स्थानांतरित किया जाए। इस फैसले ने वर्ष 1999 के अंत में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में औद्योगिक अशांति और सामाजिक अस्थिरता को जन्म दिया था, और इसकी आलोचना भी हुई थी कि न्यायालय द्वारा आम मजदूरों के हितों की अनदेखी पर्यावरण के लिए की जा रही है। इस जहिया ने करीब 20 लाख लोगों को प्रभावित किया था जो उन इकाईयों में सेवारत थे।  एक और संबध्द फैसले में उच्चतम न्यायालय ने अक्टूबर 2001 में आदेश दिया कि दिल्ली की सभी सार्वजनिक बसों को चरणबध्द तरीके से सिर्फ सी एन जी  ईंधन से चलाया जाए। यह माना गया कि सी एन जी डीजल की अपेक्षा कम प्रदूषणकारी है। अभी हाल में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल हुई है, जिसमें राजनीतिक दलों पर वोट की राजनीति के लिए चुनाव चिन्हों का दुरुपयोग करने और फोटो तथा चित्रों के द्वारा नेताओं का महिमामंडन करने पर रोक लगाने की मांग की गई है।  रुचिका गिरहोत्रा मामले में वकील रंजन लखनपाल ने मामले की नए सिरे से जांच के लिए एक जनहित याचिका दायर की थी।
खारिज की गई याचिकाएंपिछले कुछ वर्षों में उच्चतम न्यायालय में भारत का नाम बदलकर हिंदुस्तान करने, अरब सागर का नाम परिवर्तित कर सिंधु सागर रखने और यहां तक कि राष्ट्रगान को बदलने तक के लिए जनहित याचिकाएं दाखिल की जा चुकी हैं। अदालत इन्हें 'हस्तक्षेप करने वालों' की संज्ञा दे चुकी है और कई बार इन याचिकाओं को खारिज करने का डर भी दिखाया जा चुका है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सोमवार को उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें यूपी की सीएम मायावती को नोटों की माला पहनाए जाने के मामले की सीबीआई से जांच कराए जाने की मांग की गई थी। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने राय के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और उनकी पत्नी के खिलाफ दायर की गई उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसके तहत लोकायुक्त को इनके खिलाफ कथित डंपर (ट्रक) घोटाले की जांच में तेजी लाने का निर्देश देने की मांग की गई थी। मप्र हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ में पूर्व चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन, जस्टिस दीपक वर्मा और जस्टिस बीएस चौहान के खिलाफ जनहित याचिका दाखिल की गई। याचिका में सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी पर आपत्ति जताई गई है जिसमें लिव इन रिलेशन के मामले में राधा-कृष्ण का जिक्र किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाल में कहा कि निर्वासित जीवन बिता रहे मशहूर पेंटर एम. एफ. हुसैन को अदालत या देश का प्रधानमंत्री भी भारत लौटने पर मजबूर नहीं कर सकता। यह कहते हुए अदालत ने हुसैन के खिलाफ देश में चल रहे आपराधिक मामलों को रद्द करने संबंधी जनहित याचिका भी खारिज कर दी। इंदौर की एमजी रोड स्थित एक लाख वर्गफुट की आवासीय जमीन को मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह व अन्य उच्च अधिकारियों द्वारा कामर्शियल उपयोग के लिए करोड़ों में बेचे जाने का आरोप लगाने वाली लांजी के पूर्व विधायक किशोर समरीते की जनहित याचिका हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया।
26 जनहित याचिकाओं को हाईकोर्ट ने एक साथ खारिज किया
शिक्षा, स्वास्थ्य, डॉक्टरों की हड़ताल, किसानों को गेहूं का उचित दाम, ट्रैफिक कुप्रबंधन, पानी कुप्रबंधन जैसे जनहित के मुद्दों से जुड़ी 26 जनहित याचिकाओं को हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने एक साथ खारिज कर दिया। कोर्ट ने 72 पेज का फैसला सुनाया है, जिसमें सुप्रीम और मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के कई फैसलों का उल्लेख भी है। सभी याचिकाएं आनंद ट्रस्ट के ट्रस्टी सत्यपाल आनंद ने लगाई थीं।

जनहित: लेटर से भी दायर हो सकती है जनहित याचिका

जनहित: लेटर से भी दायर हो सकती है जनहित याचिका: "नव भारत टाईम्स के अनुसार- 19 Sep 2010, 0400 hrs IST , हेलो दिल्ली लेटर से भी दायर हो सकती है जनहित याचिका अगर किसी के मूल ..."