Saturday 30 April 2011

लेटर से भी दायर हो सकती है जनहित याचिका

नव भारत टाईम्स के अनुसार- 
19 Sep 2010, 0400 hrs IST,हेलो दिल्ली
लेटर से भी दायर हो सकती है जनहित याचिका 
अगर किसी के मूल अधिकार का हनन हो रहा हो तो वह सीधे तौर पर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है लेकिन अगर आम लोगों से हितों से जुड़ी बात हो तो याचिका जनहित याचिका में तब्दील हो जाती है। जनहित याचिका यानी पीआईएल का प्रावधान 80 के दशक की शुरुआत में हुआ था और इसका खूब इस्तेमाल हो रहा है।

कोई भी कर सकता है दायर
1981 से पहले जनहित याचिका दायर करने का चलन नहीं था। सुप्रीम कोर्ट के वकील डी. बी. गोस्वामी ने बताया कि 1981 में अखिल भारतीय शोषित कर्मचारी संघ (रेलवे) बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के केस में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वी. आर. कृष्णाय्यर ने अपने फैसले में कहा था कि कोई गैर-रजिस्टर्ड असोसिएशन ही संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत रिट दायर कर सकता है। साथ ही, यह भी कहा कि ऐसा संस्थान जनहित याचिका भी दायर कर सकता है लेकिन इसके बाद 1982 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस पी. एन. भगवती की अगुवाई में सात जजों की बेंच ने बहुचर्चित जज ट्रांसफर केस में ऐतिहासिक फैसला दिया।

अपने जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आम लोगों के अधिकारों को नकारा नहीं जा सकता। ऑस्ट्रेलियन लॉ कमिशन की एक सिफारिश का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर आम लोगों के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा हो तो कोई भी शख्स जनहित याचिका दायर कर सकता है। इससे पहले पीड़ित पक्ष ही अर्जी दाखिल कर सकता था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले में कहा गया कि अगर मामला आम लोगों के हित से जुड़ा हुआ हो तो कोई भी अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है। अदालत ने कहा कि अगर कोई शख्स हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को लेटर लिखकर भी समस्या के बारे में सूचित करता है तो अदालत उस लेटर को जनहित याचिका में बदल सकती है।

दरअसल यह देखा गया कि बहुत-से ऐसे लोग हैं, जिनके अधिकारों का हनन हो रहा होता है, लेकिन वे इस स्थिति में नहीं होते कि अदालत में याचिका दायर कर अपने अधिकार के लिए लड़ सकें। बंधुआ मजदूर या जेल में बंद कैदी भी इन लोगों में शुमार हैं। इन लोगों के लिए एनजीओ आदि ने समय-समय पर जनहित याचिकाएं दायर कीं और इन्हें अदालत से इंसाफ दिलाया।

दो तरह की होती हैं पीआईएल
वैसे, याचिकाएं दो तरह की होती हैं - एक प्राइवेट इंट्रेस्ट लिटिगेशन और दूसरा पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन। प्राइवेट इंट्रेस्ट लिटिगेशन में पीड़ित खुद याचिका दायर करता है। इसके लिए उसे संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत सुप्रीम कोर्ट और अनुच्छेद-226 के तहत हाई कोर्ट में याचिका दायर करने का अधिकार है। याचिकाकर्ता को अदालत को बताना होता है कि उसके मूल अधिकार का कैसे उल्लंघन हो रहा है। वहीं पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन (जनहित याचिका) दायर करने के लिए याचिकाकर्ता को यह बताना होगा कि कैसे आम लोगों के अधिकारों का हनन हो रहा है? अपने खुद के हित के लिए जनहित याचिका का इस्तेमाल नहीं हो सकता। अदालत को लेटर लिखकर भी आम आदमी के हितों की रक्षा के लिए गुहार लगाई जा सकती है। अगर अदालत चाहे तो उस लेटर को जनहित याचिका में बदल सकती है। पिछले दिनों जेल में बंद कुछ कैदियों ने स्पीडी ट्रायल के लिए हाई कोर्ट को लेटर लिखा था। उस लेटर को जनहित याचिका में बदला जा चुका है। मीडिया में छपी खबर के आधार पर हाई कोर्ट खुद भी संज्ञान ले सकता है और ऐसे मामले को खुद पीआईएल में बदल सकता है।

मूल अधिकारों के लिए सरकार जिम्मेदार
कानूनी जानकार गोस्वामी ने बताया कि कई बार पीआईएल का बेजा इस्तेमाल भी होता रहा है लेकिन समय-समय पर कोर्ट ऐसे याचिकाकर्ताओं पर भारी हर्जाना लगाता रहा है, ताकि लोग फिजूल याचिका न दायर करें। जनहित याचिका हाई कोर्ट में अनुच्छेद-226 और सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद-32 के तहत दायर कर सकता है। संविधान में मिले मूल अधिकार के उल्लंघन के मामले में दायर की जाने वाली इस तरह की याचिका में सरकार को प्रतिवादी बनाया जाता है क्योंकि मूल अधिकार की रक्षा की जिम्मेदारी सरकार की होती है। याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत सरकार को नोटिस जारी करती है और तब सुनवाई शुरू होती है।

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