tag:blogger.com,1999:blog-89562725399922514352024-03-19T14:44:50.800-07:00जनहितYou are God or Human, it's react on you.http://www.blogger.com/profile/04596303692558227089noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-8956272539992251435.post-3927995515761072962022-10-02T10:49:00.001-07:002022-10-02T10:49:45.544-07:00गांधी जयन्तीगांधी जी आज भी हैं !<div>हत्यारों के अनुयायी भी चश्मे के बदौलत देश साफ कर गये।</div><div>नफरत फैला कर भी नाम ले-ले तेरा लोगों के दिलों में जगह पा गये।</div><div>जिन्हें सत्ता में नहीं आना चाहिए,</div><div>कुर्सी पाकर हिटलर बन गये।</div><div>तेरा ही कमाल,</div><div>तुझे ही ठेंगा दिखा गये ॥</div><div>#सबकीबात</div><div>#विनोदकीलात</div><div><br></div><div>जय भारत !</div><div>जय जय जय !</div><div>©विनोदसचान</div><div>#बीतीबातें</div>You are God or Human, it's react on you.http://www.blogger.com/profile/04596303692558227089noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8956272539992251435.post-3130293863588406732011-06-29T02:08:00.000-07:002011-06-29T02:10:50.029-07:00क्या है जनहित याचिका<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="color: #666666; font-family: Arial, Tahoma, Helvetica, FreeSans, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19px;"></span><br />
<h3 class="post-title entry-title" style="color: #3d84c6; font: normal normal normal 24px/normal Times, 'Times New Roman', serif; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; position: relative; text-align: left;">ब्लॉग से जन - जन को अवगत करने को.</h3><h3 class="post-title entry-title" style="color: #3d84c6; font: normal normal normal 24px/normal Times, 'Times New Roman', serif; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; position: relative; text-align: left;">क्या है जनहित याचिका</h3><div class="post-header" style="line-height: 1.6; margin-bottom: 1.5em; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px;"><div class="post-header-line-1"></div></div><div class="post-body entry-content" style="line-height: 1.4; width: 570px;"><div style="text-align: justify;">जनहित याचिका (जहिया), भारतीय कानून में, सार्वजनिक हित की रक्षा के लिए मुकदमे का प्रावधान है। अन्य सामान्य अदालती याचिकाओं से अलग, इसमे यह आवश्यक नहीं की पीड़ित पक्ष स्वयं अदालत में जाए, यह किसी भी नागरिक या स्वयं न्यायालय द्वारा पीडितों के पक्ष में दायर किया जा सकता है। जहिया के अबतक के मामलों ने बहुत व्यापक क्षेत्रों, कारागार और बन्दी, सशस्त्र सेना, बालश्रम, बंधुआ मजदूरी, शहरी विकास, पर्यावरण और संसाधन, ग्राहक मामले, शिक्षा, राजनीति और चुनाव, लोकनीति और जवाबदेही, मानवाधिकार और स्वयं न्यायपालिका को प्रभावित किया है। न्यायिक सक्रियता और जहिया का विस्तार बहुत हद तक समांतर रूप से हुआ है और जनहित याचिका का मध्यम-वर्ग ने सामान्यत: स्वागत और समर्थन किया है। यहां यह ध्यातव्य है कि जनहित याचिका भारतीय संविधान या किसी कानून में परिभाषित नहीं है, यह उच्चतम न्यायालय के संवैधानिक व्याख्या से व्युत्पन्न है।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><b>जनहित याचिका का पहला मुकदमा</b></div><div style="text-align: justify;">जनहित याचिका का पहला प्रमुख मुकदमा 1979 में हुसैनआरा खातून और बिहार राय केस में कारागार और विचाराधीन कैदियों की अमानवीय परिस्थितियों से संबध्द था। यह एक अधिवक्ता द्वारा एक राष्ट्रीय दैनिक में छपे एक खबर, जिसमें बिहार के जेलों में बन्द हजारों विचाराधीन कैदियों का हाल वर्णित था, के आधार पर दायर किया गया था। मुकदमे के नतीजतन 40000 से भी यादा कैदियों को रिहा किया गया था। त्वरित न्याय को एक मौलिक अधिकार माना गया, जो उन कैदियों को नहीं दिया जा रहा था। इस सिध्दांत को बाद के केसों में भी स्वीकार किया गया।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><b>जनहित के कुछ प्रमुख मुकदमे</b></div><div style="text-align: justify;">2001 में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल), राजस्थान ने भोजन के अधिकार को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित चायिका दायर की। यह याचिका उस समय दायर की गई, जब एक ओर देश के सरकारी गोदामों में अनाज का भरपूर भंडार था, वहीं दूसरी ओर देश के विभिन्न हिस्सों में सूखे की स्थिति एवं भूख से मौत के मामले सामने आ रहे थे। इस केस को भोजन के अधिकार केस के नाम से जाना जाता है। भोजन के अधिकार को न्यायिक अधिकार बनाने के लिए देश की विभिन्न संस्थाएं, संगठन और ट्रेड यूनियन ने संघर्ष किया है।</div><div style="text-align: justify;">पी.यू.सी.एल. द्वारा दायर की गयी इस याचिका का आधार संविधान का अनुच्छेद 21 है जो व्यक्ति को जीने का अधिकार देता है। सर्वोच्च न्यायालय ने कई बार जीने के अधिकार को परिभाषित किया है, इसमें इजत से जीवन जीने का अधिकार और रोटी के अधिकार आदि शामिल हैं।</div><div style="text-align: justify;">एम सी मेहता और भारतीय संघ और अन्य (1985-2001) - इस लंबे चले केस में अदालत ने आदेश दिया कि दिल्ली मास्टर प्लान के तहत और दिल्ली में प्रदूषण कम करने के लिए रिहायशी इलाकों से करीब एक लाख औद्योगिक इकाईयों को बाहर स्थानांतरित किया जाए। इस फैसले ने वर्ष 1999 के अंत में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में औद्योगिक अशांति और सामाजिक अस्थिरता को जन्म दिया था, और इसकी आलोचना भी हुई थी कि न्यायालय द्वारा आम मजदूरों के हितों की अनदेखी पर्यावरण के लिए की जा रही है। इस जहिया ने करीब 20 लाख लोगों को प्रभावित किया था जो उन इकाईयों में सेवारत थे। एक और संबध्द फैसले में उच्चतम न्यायालय ने अक्टूबर 2001 में आदेश दिया कि दिल्ली की सभी सार्वजनिक बसों को चरणबध्द तरीके से सिर्फ सी एन जी ईंधन से चलाया जाए। यह माना गया कि सी एन जी डीजल की अपेक्षा कम प्रदूषणकारी है। अभी हाल में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल हुई है, जिसमें राजनीतिक दलों पर वोट की राजनीति के लिए चुनाव चिन्हों का दुरुपयोग करने और फोटो तथा चित्रों के द्वारा नेताओं का महिमामंडन करने पर रोक लगाने की मांग की गई है। रुचिका गिरहोत्रा मामले में वकील रंजन लखनपाल ने मामले की नए सिरे से जांच के लिए एक जनहित याचिका दायर की थी।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><b>खारिज की गई याचिकाएं</b></div><div style="text-align: justify;">पिछले कुछ वर्षों में उच्चतम न्यायालय में भारत का नाम बदलकर हिंदुस्तान करने, अरब सागर का नाम परिवर्तित कर सिंधु सागर रखने और यहां तक कि राष्ट्रगान को बदलने तक के लिए जनहित याचिकाएं दाखिल की जा चुकी हैं। अदालत इन्हें 'हस्तक्षेप करने वालों' की संज्ञा दे चुकी है और कई बार इन याचिकाओं को खारिज करने का डर भी दिखाया जा चुका है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सोमवार को उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें यूपी की सीएम मायावती को नोटों की माला पहनाए जाने के मामले की सीबीआई से जांच कराए जाने की मांग की गई थी। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने राय के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और उनकी पत्नी के खिलाफ दायर की गई उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसके तहत लोकायुक्त को इनके खिलाफ कथित डंपर (ट्रक) घोटाले की जांच में तेजी लाने का निर्देश देने की मांग की गई थी। मप्र हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ में पूर्व चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन, जस्टिस दीपक वर्मा और जस्टिस बीएस चौहान के खिलाफ जनहित याचिका दाखिल की गई। याचिका में सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी पर आपत्ति जताई गई है जिसमें लिव इन रिलेशन के मामले में राधा-कृष्ण का जिक्र किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाल में कहा कि निर्वासित जीवन बिता रहे मशहूर पेंटर एम. एफ. हुसैन को अदालत या देश का प्रधानमंत्री भी भारत लौटने पर मजबूर नहीं कर सकता। यह कहते हुए अदालत ने हुसैन के खिलाफ देश में चल रहे आपराधिक मामलों को रद्द करने संबंधी जनहित याचिका भी खारिज कर दी। इंदौर की एमजी रोड स्थित एक लाख वर्गफुट की आवासीय जमीन को मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह व अन्य उच्च अधिकारियों द्वारा कामर्शियल उपयोग के लिए करोड़ों में बेचे जाने का आरोप लगाने वाली लांजी के पूर्व विधायक किशोर समरीते की जनहित याचिका हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;"><b>26 जनहित याचिकाओं को हाईकोर्ट ने एक साथ खारिज किया</b></div><div style="text-align: justify;">शिक्षा, स्वास्थ्य, डॉक्टरों की हड़ताल, किसानों को गेहूं का उचित दाम, ट्रैफिक कुप्रबंधन, पानी कुप्रबंधन जैसे जनहित के मुद्दों से जुड़ी 26 जनहित याचिकाओं को हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने एक साथ खारिज कर दिया। कोर्ट ने 72 पेज का फैसला सुनाया है, जिसमें सुप्रीम और मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के कई फैसलों का उल्लेख भी है। सभी याचिकाएं आनंद ट्रस्ट के ट्रस्टी सत्यपाल आनंद ने लगाई थीं।</div></div></div>You are God or Human, it's react on you.http://www.blogger.com/profile/04596303692558227089noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8956272539992251435.post-55699312303792020332011-05-10T10:14:00.000-07:002011-05-10T10:14:39.328-07:00आरटीआइ दायरे में सहकारी बैंक खेल संघ और निजी स्कूल<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><b style="color: blue;">दैनिक जागरण (Rashtriya) </b></span></div><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><i><span style="color: lime;">चंडीगढ़ से दयानंद शर्मा जी ने बताया है---</span></i></span></div><div style="color: red; text-align: left;"><span style="font-size: x-large;">आरटीआइ दायरे में सहकारी बैंक खेल संघ और निजी स्कूल</span></div><div style="color: red; text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"> केंद्र और राज्य सरकार के अधीन आने वाले विभाग ही नहीं खेल संघ, सहकारी बैंक, चीनी मिलें तथा निजी स्कूल भी आरटीआइ के दायरे में आते हैं। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने सोमवार को दर्जन भर मामलों को एक साथ निपटाते हुए यह बात कही। अदालत ने अपने आदेश में कहा, संघ और संस्थाएं सरकार से वित्तीय सहायता लेती हैं। अत: यह जन अथॉरिटी हैं, और उन्हें जनता द्वारा मांगी जाने वाली सूचना मुहैया करानी होगी। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के न्यायाधीश एमएस सूलर ने अनिल कश्यप की याचिका समेत दर्जन भर मामलों का एक साथ निपटारा करते हुए कहा, सभी निजी स्कूल, पंजाब क्रिकेट एसोसिएशन मोहाली, लॉन टेनिस एसोसिएशन जालंधर, सतलुज क्लब लुधियाना पर पब्लिक अथॉरिटी के नाते यह निर्णय लागू होगा। हरियाणा-पंजाब की सभी कोऑपरेटिव शुगर मिल, हाउसिंग सोसाइटी व बैंक प्रबंधन सोसाइटी रजिस्ट्रार के यहां पंजीकृत हैं। ऐसे में इन पर सरकार का नियंत्रण बनता है। ऐसी स्थिति में उन्हें भी जनता द्वारा मांगी जाने वाली सूचना मुहैया करानी होगी। न्यायाधीश ने कहा, सूचना अधिकार कानून संस्थाओं में पारदíशता बढ़ाने के लिए बनाया गया था लेकिन संगठन इसे नाकाम करने में लगे हैं। उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ता अनिल कश्यप ने पीसीए से संघ के सदस्यों, मोहाली क्रिकेट स्टेडियम व कुछ अन्य विषयों के बारे में कुछ सूचनाएं मांगी थी। पीसीए द्वारा सूचना देने से इनकार करने पर कश्यप ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। गत वर्ष सिंतबर में हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश मुकुल और न्यायाधीश अजय तिवारी की खंडपीठ ने करनाल सहकारी चीनी मिल की याचिका को खारिज करते हुए आदेश दिया था कि सार्वजनिक क्षेत्र से जुडी होती हैं और इस कारण वह सूचना के अधिकार के तहत सूचना देने के लिए बाध्य हैं।</div></div>You are God or Human, it's react on you.http://www.blogger.com/profile/04596303692558227089noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8956272539992251435.post-32624240215074289702011-05-06T21:02:00.000-07:002011-05-06T21:02:37.676-07:00सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिकाओं के लिए नियम बनाने का आदेश दिया<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"> अदालत ब्लोग्पोस्त के लोकेश के अनुसार---</div><div style="text-align: left;">सुप्रीम कोर्ट ने अनुचित जनहित याचिकाओं (पीआईएल) के मद्देनजर एक उचित जनहित याचिका की पहचान करने के लिए उच्च न्यायालयों को आठ सूत्री व्यापक दिशानिर्देश जारी किए हैं। इसके साथ ही अदालत ने उत्तराखण्ड हाई कोर्ट में एक <span style="font-weight: bold;">अनुचित</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">जनहित</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">याचिका</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">दायर</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">करने</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">के</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">लिए</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">वहां</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">के</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">एक</span> <span style="font-weight: bold;">वकील</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">पर</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">एक</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">लाख</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">रूपए</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">का</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">जुर्माना</span><span style="font-weight: bold;"> </span>कर दिया है। न्यायाधीश दलवीर भंडारी और न्यायाधीश मुकुंदकम शर्मा की पीठ ने सभी उच्च न्यायालयों को कहा है कि उचित और अनुचित पीआईएल में अंतर स्पष्ट करने के लिए उन्हें तीन महीनों के भीतर अपने नियम बना लेने चाहिए तथा अदालतों को उचित और प्रामाणिक पीआईएल को हर हाल में प्रोत्साहित करना चाहिए और <span style="font-weight: bold;">उन</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">पीआईएल</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">को</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">दरकिनार</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">कर</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">देना</span> <span style="font-weight: bold;">चाहिए</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">जिन्हें</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">अनुचित</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">परिणामों</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">के</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">लिए</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">दायर</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">किया</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">गया</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">हो।</span><br />
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इसके साथ ही अदालत ने नैनीताल के वकील बलवंत सिंह चौफाल पर एक लाख रूपए का जुर्माना ठोक दिया। सिंह ने राज्य के महाधिवक्ता एल.पी.नैथानी की 2001 में की गई नियुक्ति पर सवाल खड़े करने की गुस्ताखी की थी। पीठ ने कहा कि जनहित याचिकाओं पर विचार करने के लिए हर न्यायाधीश अपनी व्यक्तिगत प्रक्रिया अपनाएं, इसके बदले उचित यह होगा कि हर हाई कोर्ट उचित पीआईएल को प्रोत्साहित करने तथा गलत इरादों से दायर की गई पीआईएल को दरकिनार करने के लिए ठीक से नियम बनाए। </div></div>You are God or Human, it's react on you.http://www.blogger.com/profile/04596303692558227089noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8956272539992251435.post-6693636883474974742011-04-30T21:54:00.000-07:002011-04-30T21:54:23.722-07:00जनहित याचिकाओं की राह में यूपी हाईकोर्ट का रोड़ा!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><strong>प्रवक्ता.कम के अनुसार ---</strong></div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><strong>भारत</strong> के न्यायिक इतिहास में उत्तरप्रदेश हाईकोर्ट ऐसा पहला हाई कोर्ट हो गया है, जिसमें अब किसी गरीब और आम व्यक्ति या किसी भी संस्था की ओर से आसानी से जनहित याचिका दायर नहीं की जा सकेगी। हाई कोर्ट की प्रशासनिक कार्यवाही के तहत जारी किये गये उक्त आदेश को देखने से लगता है, मानो यह आदेश कार्यपालिका के किसी अधिकारी द्वारा आम लोगों की आवाज़ को दबाने के लिए जारी किया गया हो। जबकि न्यायिक अधिकारियों से ऐसे कठोर प्रशासकीय आदेशों की अपेक्षा नहीं की जाती है। </div>उ. प्र. हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाईन के नाम पर यह कदम उठाया है। जिनमें सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखण्ड से सम्बन्धित एक मामले में कहा था कि जनहित याचिकाओं का दुरुपयोग रोकने के लिये सभी हाई कोर्ट्स को अपने-अपने स्तर पर कदम उठाने चाहिये। उत्तर प्रदेश हाई कोर्ट ने हाई कोर्ट रूल्स 1952 के अध्याय 22 में संशोधन करके नियम एक में उपनियम 3-ए जोडा है। ऐसा बताया जा रहा है कि उ. प्र. हाई कोर्ट ने यह कहकर के उपरोक्त संशोधन किया है कि इससे हाई कोर्ट में दायर हो रही जनहित याचिकाओं के दुरुपयोग पर अंकुश लगाना आसान हो सकेगा।<br />
अब इस नये नियम के मुताबिक जब कोई व्यक्ति उ. प्र. हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर करेगा तो सबसे पहले उसे एक शपथ-पत्र पेश करके अपना संक्षिप्त परिचय प्रमाणित करना होगा। इसके अलावा शपथ-पत्र में उसे यह भी स्पष्ट करना होगा कि उसका याचिका को दायर करने में कोई व्यक्तिगत हित या लाभ तो निहित नहीं है। उसे यह भी घोषणा करनी होगी कि जनहित याचिका मंजूर होने पर न तो उसे स्वयं को और न ही उसके किसी सम्बन्धी को किसी प्रकार का लाभ होगा। हाई कोर्ट के नये रूल में आगे यह भी कहा गया है कि शपथ-पत्र में स्पष्ट रूप से घोषणा करनी होगी कि याचिका में पारित आदेश से किसी व्यक्ति विशेष, समुदाय अथवा राज्य का नुकसान नहीं होगा।<br />
यदि कोई सामाजिक संस्था याचिका दायर करती है तो उसे भी याचिका दायर करने के लिए अपनी विश्वसनीयता और जनहित से जुडे उसके कार्यों, उपलब्धियों आदि का विस्तृत विवरण दर्शाते हुए शपथ-पत्र पेश करना होगा। हाई कोर्ट के नये संशोधित नियम में यह और कहा गया है कि यदि उपरोक्त शर्तें या इनमें से एक भी शर्त याचिकाकर्ता द्वारा शपथ-पत्र के जरिये पेश की जाने वाली याचिका में स्पष्ट रूप से शामिल तोनहीं की जाती हैं तो याचिका पर हाई कोर्ट विचार ही नहीं करेगा।<br />
हाई कोर्ट के उपरोक्त संशोधन संविधान की मूल भावना को ही समाप्त कर देने वाला है। इस प्रकार के कानून के बाद किसी असक्षम व्यक्ति द्वारा याचिका दायर करना तो हमेशा के लिये समाप्त हो जाने वाला है और पत्र-याचिका जैसी शब्दावली की भी समाप्ति ही समझी जावे। यह न मात्र अनुचित ही, बल्कि असंवैधानिक भी है। यदि गहराई में जाकर देखें तो हम पाते हैं कि जनहित याचिकाओं के जरिये आम लोगों के हितों और मानव अधिकारों का संरक्षण होता रहा है। ऐसे में हाई कोर्ट का यह नया कानून मानव अधिकारों का हनने करने वाला कदम सिद्ध हो सकता है।<br />
इस बात में भी कोई दो राय नहीं है कि जनहित याचिका के माध्यम से कुछ लोग कानून के इस प्रावधान का दुरुपयोग और स्वयं के हित में उपयोग कर रहे हैं। लेकिन ऐसे कुछ लोगों के कारण सभी लोगों के न्याय प्राप्ति के मार्ग में बाधाएँ खडी कर दी जावें और नागरिकों के संवैधानिक संरक्षण प्राप्त करने के मौलिक अधिकारों पर परोक्ष रूप से पाबन्दी लगादी जावे, यह तो कोई न्याय नहीं हुआ।<br />
यदि कोर्ट के समक्ष यह प्रमाणित हो जाता है कि कोई व्यक्ति जनहित याचिका के प्रावधान का दुरुपयोग कर रहा है, तो कोर्ट को ऐसे लोगों को दण्डित करने के लिये कडे कानून बनाने जाने चाहिये, न कि ऐसे चालाक किस्म के लोगों के कारण अन्य निर्दोष लोगों के न्याय प्राप्ति के मार्ग में व्यवधान पैदा किये जावें। मैं समझता हूँ कि न मात्र यह न्याय की माँग है, बल्कि मेरा साफ तौर पर यह भी मानना है कि इस संशोधन की संवैधानिकता को चुनौती दी जानी चाहिये और यदि चुनौती दी गयी तो संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 32 एवं 226 की अभी तक सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गयी विवेचना एवं यह न्याय के पवित्र सिद्धान्तों के सामने यह टिकने वाला नहीं है।</div>You are God or Human, it's react on you.http://www.blogger.com/profile/04596303692558227089noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8956272539992251435.post-32108673398320672422011-04-30T21:52:00.000-07:002011-04-30T21:52:02.557-07:00क्या है जनहित याचिका<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><span style="line-height: 20px; text-align: justify;"><span style="color: red; font-size: x-large;"> देश बंधू के अनुसार जनहित याचिका </span></span></div><div style="text-align: left;"><span style="line-height: 20px; text-align: justify;"><span style="color: red; font-size: x-large;"> </span></span></div><div style="text-align: left;"><span class="timeclr">(08:50:13 PM)</span> <span class="dateclr">31, May, 2010, Monday</span><span style="line-height: 20px; text-align: justify;"> </span></div><div style="text-align: left;"><span style="line-height: 20px; text-align: justify;">जनहित याचिका (जहिया), भारतीय कानून में, सार्वजनिक हित की रक्षा के लिए मुकदमे का प्रावधान है। अन्य सामान्य अदालती याचिकाओं से अलग, इसमे यह आवश्यक नहीं की पीड़ित पक्ष स्वयं अदालत में जाए, यह किसी भी नागरिक या स्वयं न्यायालय द्वारा पीडितों के पक्ष में दायर किया जा सकता है। जहिया के अबतक के मामलों ने बहुत व्यापक क्षेत्रों, कारागार और बन्दी, सशस्त्र सेना, बालश्रम, बंधुआ मजदूरी, शहरी विकास, पर्यावरण और संसाधन, ग्राहक मामले, शिक्षा, राजनीति और चुनाव, लोकनीति और जवाबदेही, मानवाधिकार और स्वयं न्यायपालिका को प्रभावित किया है। न्यायिक सक्रियता और जहिया का विस्तार बहुत हद तक समांतर रूप से हुआ है और जनहित याचिका का मध्यम-वर्ग ने सामान्यत: स्वागत और समर्थन किया है। यहां यह ध्यातव्य है कि जनहित याचिका भारतीय संविधान या किसी कानून में परिभाषित नहीं है, यह उच्चतम न्यायालय के संवैधानिक व्याख्या से व्युत्पन्न है। </span></div><div style="text-align: left;"><span style="line-height: 20px; text-align: justify;"><span style="color: red;"><strong><em><u>जनहित याचिका का पहला मुकदमा</u></em></strong></span><br />
जनहित याचिका का पहला प्रमुख मुकदमा 1979 में हुसैनआरा खातून और बिहार राय केस में कारागार और विचाराधीन कैदियों की अमानवीय परिस्थितियों से संबध्द था। यह एक अधिवक्ता द्वारा एक राष्ट्रीय दैनिक में छपे एक खबर, जिसमें बिहार के जेलों में बन्द हजारों विचाराधीन कैदियों का हाल वर्णित था, के आधार पर दायर किया गया था। मुकदमे के नतीजतन 40000 से भी यादा कैदियों को रिहा किया गया था। त्वरित न्याय को एक मौलिक अधिकार माना गया, जो उन कैदियों को नहीं दिया जा रहा था। इस सिध्दांत को बाद के केसों में भी स्वीकार किया गया। <br />
<span style="color: red;"><strong><em><u>जनहित के कुछ प्रमुख मुकदमे</u></em></strong></span><br />
2001 में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल), राजस्थान ने भोजन के अधिकार को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित चायिका दायर की। यह याचिका उस समय दायर की गई, जब एक ओर देश के सरकारी गोदामों में अनाज का भरपूर भंडार था, वहीं दूसरी ओर देश के विभिन्न हिस्सों में सूखे की स्थिति एवं भूख से मौत के मामले सामने आ रहे थे। इस केस को भोजन के अधिकार केस के नाम से जाना जाता है। भोजन के अधिकार को न्यायिक अधिकार बनाने के लिए देश की विभिन्न संस्थाएं, संगठन और ट्रेड यूनियन ने संघर्ष किया है। <br />
पी.यू.सी.एल. द्वारा दायर की गयी इस याचिका का आधार संविधान का अनुच्छेद 21 है जो व्यक्ति को जीने का अधिकार देता है। सर्वोच्च न्यायालय ने कई बार जीने के अधिकार को परिभाषित किया है, इसमें इजत से जीवन जीने का अधिकार और रोटी के अधिकार आदि शामिल हैं। <br />
एम सी मेहता और भारतीय संघ और अन्य (1985-2001) - इस लंबे चले केस में अदालत ने आदेश दिया कि दिल्ली मास्टर प्लान के तहत और दिल्ली में प्रदूषण कम करने के लिए रिहायशी इलाकों से करीब एक लाख औद्योगिक इकाईयों को बाहर स्थानांतरित किया जाए। इस फैसले ने वर्ष 1999 के अंत में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में औद्योगिक अशांति और सामाजिक अस्थिरता को जन्म दिया था, और इसकी आलोचना भी हुई थी कि न्यायालय द्वारा आम मजदूरों के हितों की अनदेखी पर्यावरण के लिए की जा रही है। इस जहिया ने करीब 20 लाख लोगों को प्रभावित किया था जो उन इकाईयों में सेवारत थे। एक और संबध्द फैसले में उच्चतम न्यायालय ने अक्टूबर 2001 में आदेश दिया कि दिल्ली की सभी सार्वजनिक बसों को चरणबध्द तरीके से सिर्फ सी एन जी ईंधन से चलाया जाए। यह माना गया कि सी एन जी डीजल की अपेक्षा कम प्रदूषणकारी है। अभी हाल में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल हुई है, जिसमें राजनीतिक दलों पर वोट की राजनीति के लिए चुनाव चिन्हों का दुरुपयोग करने और फोटो तथा चित्रों के द्वारा नेताओं का महिमामंडन करने पर रोक लगाने की मांग की गई है। रुचिका गिरहोत्रा मामले में वकील रंजन लखनपाल ने मामले की नए सिरे से जांच के लिए एक जनहित याचिका दायर की थी।<br />
<em><span style="color: red;"><strong><u>खारिज की गई याचिकाएं</u></strong></span></em>पिछले कुछ वर्षों में उच्चतम न्यायालय में भारत का नाम बदलकर हिंदुस्तान करने, अरब सागर का नाम परिवर्तित कर सिंधु सागर रखने और यहां तक कि राष्ट्रगान को बदलने तक के लिए जनहित याचिकाएं दाखिल की जा चुकी हैं। अदालत इन्हें 'हस्तक्षेप करने वालों' की संज्ञा दे चुकी है और कई बार इन याचिकाओं को खारिज करने का डर भी दिखाया जा चुका है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सोमवार को उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें यूपी की सीएम मायावती को नोटों की माला पहनाए जाने के मामले की सीबीआई से जांच कराए जाने की मांग की गई थी। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने राय के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और उनकी पत्नी के खिलाफ दायर की गई उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसके तहत लोकायुक्त को इनके खिलाफ कथित डंपर (ट्रक) घोटाले की जांच में तेजी लाने का निर्देश देने की मांग की गई थी। मप्र हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ में पूर्व चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन, जस्टिस दीपक वर्मा और जस्टिस बीएस चौहान के खिलाफ जनहित याचिका दाखिल की गई। याचिका में सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी पर आपत्ति जताई गई है जिसमें लिव इन रिलेशन के मामले में राधा-कृष्ण का जिक्र किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाल में कहा कि निर्वासित जीवन बिता रहे मशहूर पेंटर एम. एफ. हुसैन को अदालत या देश का प्रधानमंत्री भी भारत लौटने पर मजबूर नहीं कर सकता। यह कहते हुए अदालत ने हुसैन के खिलाफ देश में चल रहे आपराधिक मामलों को रद्द करने संबंधी जनहित याचिका भी खारिज कर दी। इंदौर की एमजी रोड स्थित एक लाख वर्गफुट की आवासीय जमीन को मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह व अन्य उच्च अधिकारियों द्वारा कामर्शियल उपयोग के लिए करोड़ों में बेचे जाने का आरोप लगाने वाली लांजी के पूर्व विधायक किशोर समरीते की जनहित याचिका हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया।<br />
<span style="color: red;"><strong><em><u>26 जनहित याचिकाओं को हाईकोर्ट ने एक साथ खारिज किया</u></em></strong></span> <br />
शिक्षा, स्वास्थ्य, डॉक्टरों की हड़ताल, किसानों को गेहूं का उचित दाम, ट्रैफिक कुप्रबंधन, पानी कुप्रबंधन जैसे जनहित के मुद्दों से जुड़ी 26 जनहित याचिकाओं को हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने एक साथ खारिज कर दिया। कोर्ट ने 72 पेज का फैसला सुनाया है, जिसमें सुप्रीम और मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के कई फैसलों का उल्लेख भी है। सभी याचिकाएं आनंद ट्रस्ट के ट्रस्टी सत्यपाल आनंद ने लगाई थीं।</span></div></div>You are God or Human, it's react on you.http://www.blogger.com/profile/04596303692558227089noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8956272539992251435.post-57179447184341238292011-04-30T21:39:00.000-07:002011-04-30T21:39:49.124-07:00जनहित: लेटर से भी दायर हो सकती है जनहित याचिका<a href="http://jantahit.blogspot.com/2011/04/blog-post_30.html?spref=bl">जनहित: लेटर से भी दायर हो सकती है जनहित याचिका</a>: "नव भारत टाईम्स के अनुसार- 19 Sep 2010, 0400 hrs IST , हेलो दिल्ली लेटर से भी दायर हो सकती है जनहित याचिका अगर किसी के मूल ..."You are God or Human, it's react on you.http://www.blogger.com/profile/04596303692558227089noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8956272539992251435.post-27671948727318116412011-04-30T21:36:00.000-07:002011-04-30T21:36:16.561-07:00लेटर से भी दायर हो सकती है जनहित याचिका<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><span style="font-size: large;"><span style="color: blue;">नव भारत टाईम्स</span></span> के अनुसार- </div><div style="text-align: left;"><span class="headingnextag">19 Sep 2010, 0400 hrs IST<span class="sep1">,</span>हेलो दिल्ली</span> </div><div style="text-align: left;"><span style="color: red; font-size: x-large;"><span class="artshowhead">लेटर से भी दायर हो सकती है जनहित याचिका</span></span> </div><div style="text-align: left;"><span id="advenueINTEXT" name="advenueINTEXT"><span style="font-weight: bold;">अगर किसी के </span> मूल अधिकार का हनन हो रहा हो तो वह सीधे तौर पर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है लेकिन अगर आम लोगों से हितों से जुड़ी बात हो तो याचिका जनहित याचिका में तब्दील हो जाती है। जनहित याचिका यानी पीआईएल का प्रावधान 80 के दशक की शुरुआत में हुआ था और इसका खूब इस्तेमाल हो रहा है। <br />
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<span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-size: large;"><b><span style="color: red;">कोई भी कर सकता है दायर</span></b></span><span style="font-weight: bold;"> </span><br />
<span style="font-family: MS Sans Serif;"> 1981 </span> से पहले जनहित याचिका दायर करने का चलन नहीं था। सुप्रीम कोर्ट के वकील डी. बी. गोस्वामी ने बताया कि 1981 में अखिल भारतीय शोषित कर्मचारी संघ (रेलवे) बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के केस में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वी. आर. कृष्णाय्यर ने अपने फैसले में कहा था कि कोई गैर-रजिस्टर्ड असोसिएशन ही संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत रिट दायर कर सकता है। साथ ही, यह भी कहा कि ऐसा संस्थान जनहित याचिका भी दायर कर सकता है लेकिन इसके बाद 1982 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस पी. एन. भगवती की अगुवाई में सात जजों की बेंच ने बहुचर्चित जज ट्रांसफर केस में ऐतिहासिक फैसला दिया। <br />
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अपने जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आम लोगों के अधिकारों को नकारा नहीं जा सकता। ऑस्ट्रेलियन लॉ कमिशन की एक सिफारिश का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर आम लोगों के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा हो तो कोई भी शख्स जनहित याचिका दायर कर सकता है। इससे पहले पीड़ित पक्ष ही अर्जी दाखिल कर सकता था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले में कहा गया कि अगर मामला आम लोगों के हित से जुड़ा हुआ हो तो कोई भी अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है। अदालत ने कहा कि अगर कोई शख्स हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को लेटर लिखकर भी समस्या के बारे में सूचित करता है तो अदालत उस लेटर को जनहित याचिका में बदल सकती है। <br />
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दरअसल यह देखा गया कि बहुत-से ऐसे लोग हैं, जिनके अधिकारों का हनन हो रहा होता है, लेकिन वे इस स्थिति में नहीं होते कि अदालत में याचिका दायर कर अपने अधिकार के लिए लड़ सकें। बंधुआ मजदूर या जेल में बंद कैदी भी इन लोगों में शुमार हैं। इन लोगों के लिए एनजीओ आदि ने समय-समय पर जनहित याचिकाएं दायर कीं और इन्हें अदालत से इंसाफ दिलाया। <br />
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<span style="font-weight: bold;"> </span><b style="color: red;"><span style="font-size: large;">दो तरह की होती हैं पीआईएल</span></b><span style="font-weight: bold;"> </span><br />
वैसे, याचिकाएं दो तरह की होती हैं - एक प्राइवेट इंट्रेस्ट लिटिगेशन और दूसरा पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन। प्राइवेट इंट्रेस्ट लिटिगेशन में पीड़ित खुद याचिका दायर करता है। इसके लिए उसे संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत सुप्रीम कोर्ट और अनुच्छेद-226 के तहत हाई कोर्ट में याचिका दायर करने का अधिकार है। याचिकाकर्ता को अदालत को बताना होता है कि उसके मूल अधिकार का कैसे उल्लंघन हो रहा है। वहीं पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन (जनहित याचिका) दायर करने के लिए याचिकाकर्ता को यह बताना होगा कि कैसे आम लोगों के अधिकारों का हनन हो रहा है? अपने खुद के हित के लिए जनहित याचिका का इस्तेमाल नहीं हो सकता। अदालत को लेटर लिखकर भी आम आदमी के हितों की रक्षा के लिए गुहार लगाई जा सकती है। अगर अदालत चाहे तो उस लेटर को जनहित याचिका में बदल सकती है। पिछले दिनों जेल में बंद कुछ कैदियों ने स्पीडी ट्रायल के लिए हाई कोर्ट को लेटर लिखा था। उस लेटर को जनहित याचिका में बदला जा चुका है। मीडिया में छपी खबर के आधार पर हाई कोर्ट खुद भी संज्ञान ले सकता है और ऐसे मामले को खुद पीआईएल में बदल सकता है। <br />
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<span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-size: large;"><span style="color: red;">मूल अधिकारों के लिए सरकार जिम्मेदार</span></span><span style="font-weight: bold;"> </span><br />
कानूनी जानकार गोस्वामी ने बताया कि कई बार पीआईएल का बेजा इस्तेमाल भी होता रहा है लेकिन समय-समय पर कोर्ट ऐसे याचिकाकर्ताओं पर भारी हर्जाना लगाता रहा है, ताकि लोग फिजूल याचिका न दायर करें। जनहित याचिका हाई कोर्ट में अनुच्छेद-226 और सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद-32 के तहत दायर कर सकता है। संविधान में मिले मूल अधिकार के उल्लंघन के मामले में दायर की जाने वाली इस तरह की याचिका में सरकार को प्रतिवादी बनाया जाता है क्योंकि मूल अधिकार की रक्षा की जिम्मेदारी सरकार की होती है। याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत सरकार को नोटिस जारी करती है और तब सुनवाई शुरू होती है। </span></div></div>You are God or Human, it's react on you.http://www.blogger.com/profile/04596303692558227089noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8956272539992251435.post-2697360678754816912011-04-30T21:33:00.000-07:002011-04-30T21:33:30.778-07:00जनहित में कानून<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">जनहित नाहीत ही बना रहे इसके लिए न्यायालयों ने कुछ गियिद लाईने बनाई है अदालत ब्लोग्पोस्त के जरिये से यह खबर देखे. <br />
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<div class="post-header-line-1"> <span class="post-comment-link" style="float: right;"> </span> <span class="post-author vcard"> Friday, May 14, 2010 इस कार्यवाही को पेश करने वाले: <span class="fn" style="color: red;">लोकेश Lokesh</span><span style="color: red;"> </span></span> <br />
<span class="post-icons"> <span class="item-action"> <a href="http://www.blogger.com/email-post.g?blogID=7358996691339264801&postID=961797220352720224" title="Email Post"> <img alt="" class="icon-action" height="13" src="img/icon18_email.gif" width="18" /> </a> </span> </span> </div><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgd7yKFJqTyOEU-8nhTcLG0FyIkwYNCR3iXhCZelODLNQ8QkJ6HCyWk4CNCoAA1rcmxr8ZcUvRLZjg6Be2LHGKIescJ3nk5fMT4S8o_RdYFrT4llQtenEVX-A_hwg_-AU50omZMJBRYdvU/"><img alt="" border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgd7yKFJqTyOEU-8nhTcLG0FyIkwYNCR3iXhCZelODLNQ8QkJ6HCyWk4CNCoAA1rcmxr8ZcUvRLZjg6Be2LHGKIescJ3nk5fMT4S8o_RdYFrT4llQtenEVX-A_hwg_-AU50omZMJBRYdvU/" style="cursor: pointer; float: left; height: 163px; margin: 0pt 10px 10px 0pt; width: 203px;" /></a> अब उत्तरप्रदेश हाईकोर्ट या उसकी उसकी लखनऊ बेंच में हर व्यक्ति या हर संस्था की ओर जनहित याचिका नहीं दायर की जा सकेगी। जनहित याचिका (पीआईएल) दायर करने के लिए याचिकाकर्ता अथवा संस्था को <span style="font-weight: bold;">अपनी</span> <span style="font-weight: bold;">विश्वसनीयता</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">और</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">जनहित</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">से</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">जुड़े</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">उसके</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">कार्यो</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">आदि</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">का</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">विस्तृत</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">उल्लेख</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">हलफनामा</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">के</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">मार्फत</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">करना</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">होगा</span> तभी अदालत उसकी याचिका पर सुनवाई करेगी। यानी अब जनहित याचिका दाखिल करना आसान नहीं होगा।<br />
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उच्च न्यायालय ने हाईकोर्ट रूल्स 1952 के अध्याय 22 में संशोधन कर नियम एक में उपनियम 3ए को शामिल कर लिया है। हाईकोर्ट ने अपने इस रूल्स में नया संशोधन संविधान के अनुच्छेद 225 में उसे प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए किया है। यह नया संशोधन 1 मई 2010 को किया गया।<br />
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हाई कोर्ट ने उक्त संशोधन दायर हो रही जनहित याचिकाओं के दुरुपयोग पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से किया है। अब इस नये नियम के मुताबिक जब कोई व्यक्ति हाईकोर्ट अथवा उसकी लखनऊ बेंच में जनहित याचिका दायर करेगा तो उसे पहले इस आशय का हलफनामा कोर्ट में देना होगा कि उस व्यक्ति या याचिकाकर्ता का संक्षिप्त परिचय क्या है।<br />
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याचिकाकर्ता को अपना परिचय देने के साथ-साथ अपनी विश्वसनीयता और जनहित का कार्य, जो वह याचिका में उठा रहा है उसे भी हलफनामा के मार्फत सबसे पहले स्पष्ट करना होगा। इसके अलावा <span style="font-weight: bold;">हलफनामा</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">में</span> <span style="font-weight: bold;">यह</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">भी</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">बताना</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">होगा</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">कि</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">उसका</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">इस</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">याचिका</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">को</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">दायर</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">करने</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">में</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">कोई</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">व्यक्तिगत</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">हित</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">नहीं</span> है। हलफनामा इस बात का भी देना होगा कि जनहित याचिका में किसी प्रकार का <span style="font-weight: bold;">आदेश</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">पारित</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">होने</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">पर</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">न</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">तो</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">उसे</span> <span style="font-weight: bold;">स्वयं</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">और</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">न</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">ही</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">उसके</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">किसी</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">संबंधी</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">को</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">कोई</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">लाभ</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">होगा।</span> आगे यह भी हलफनामा में स्पष्ट करना होगा कि याचिका में पारित आदेश से न तो किसी व्यक्ति विशेष, समुदाय अथवा राज्य का नुकसान होगा।<br />
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उक्त सभी बातें यदि याची ने अपनी याचिका में स्पष्ट नहीं की है तो उसकी याचिका की पोषणीयता नहीं होगी और अदालत उस पर विचार ही नहीं करेगी। यह संशोधन हाईकोर्ट ने अपने नियमों में इस वजह से किया क्योंकि सुप्रीमकोर्ट ने अभी हाल ही में उत्तराखंड राज्य के केस में देश के सभी हाईकोर्ट को पीआईएल के दुरुपयोग को रोकने के लिए कहा था<br />
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